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Indian Institute of Job Oriented Training (Jhansi)
मासूम छात्र की गुहार, आखिर कौन हे गुनेहगार?

मासूम छात्र की गुहार, आखिर कौन हे गुनेहगार?

नमस्कार,

मेरा नाम रितेश श्रीवास्तव हे l मैंने आज से करीब तीन वर्ष पूर्व जुलाई 2008 में आई.आई.जे.टी संस्था की ग्वालियर शाखा में दाखिला लिया था l मैंने 2008 में ही आई.एस.सी बोर्ड से बारहवीं कक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की थी l में शुरू से ही कम्प्यूटर में काफी तेज़ था और उस दौरान कमप्यूटर एकाउंटिंग का काफी चलन था इसीलिए मैंने कम्प्यूटर एकाउंटिंग करा रही एक संस्था आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा में दाखिला ले लिया l चूंकि यह कोर्स केवल एक वर्ष का था इसीलिए मैंने स्नातक को एक वर्ष के लिए रोक दिया और आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा में अपने सी.बी.ऐ की पढ़ाई शुरू कर दी l

में रोज़ ग्वालियर तक उप - डाउन करता था l आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा में पढ़ाई का स्तर बहुत अच्छा था l आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा में प्रशिक्षित और क्वालीफाईड टीचर्स थे जिनसे पढने में बहुत मज़ा आता था l आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा में सब कुछ सही चल रहा था लेकिन सर्दियाँ आते ही मुझे रोज़ ग्वालियर का सफ़र करने में दिक्कत होने लगी l लिहाजा मैंने 10 दिसंबर 2008 को आई.आई.जे.टी की ग्वालियर शाखा से आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में ट्रान्सफर ले लिया l लेकिन ट्रान्सफर लेने से पहले मैंने आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा के बारे में जानकारी ली तो मालूम पड़ा कि बहुत अच्छी पढाई होती है और चौबीस घंटे बिजली रहती है l साथ ही साथ मुझे यह भी बताया गया कि आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा अभी निर्माणाधीन है और जल्द ही इसमें ऐ.सी व वाटर कूलर भी लग जायेंगे l

यहाँ पढाई के विषय में मुझे बताया गया :

1 एक वर्ष का सी.बी.ऐ. कोर्स l

2 एक वर्ष के सी.बी.ऐ कोर्स के बाद तीन माह की प्रेक्टिकल ट्रेनिंग l

3 प्रक्टिकल ट्रेनिंग के बाद Rs.7000 या उस से ज़्यादा की नौकरी किसी भी मेट्रो सिटी में l

4 पढाई के दौरान प्रतिदिन तीन घंटे की क्लासें होंगी l

5 एक घंटे की एक क्लास कम्प्यूटर की होगी l

6 एक घंटे की एक क्लास एकाउंट्स की होगी l

7 एक आवश्यक क्लास अंग्रेज़ी विषय की होगी l

8 हमारे कुल 9 मोड्यूल होंगे l

9 प्रत्येक मोड्यूल के अंत में एक परीक्षा होगी l

10 सभी मोड्यूल के अंत में एक अंतिम परीक्षा होगी l

11 अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों को एक माह के भीतर नौकरी की गारंटी l

12 पढ़ाई ख़त्म होने के बाद आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा ने आई.आई.जे.टी की ओर से सी.बी.ऐ सर्टिफिकेट, कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी का सर्टिफिकेट तथा हीरो माइंडमाइन का सर्टिफिकेट भी देने का वायदा किया था मुझसे चंद्रप्रकाश ने l

आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में ट्रांसफ़र लेने के बाद मुझे काफी अच्छा लग रहा था क्योंकि अब मुझे रोज़ - रोज़ ग्वालियर तक नहीं जाना पड़ता था l

लेकिन जल्द ही मेरी ख़ुशी ग़म में गई जब मैंने जाना कि हमारे कंप्यूटर टीचर को कंप्यूटर कि पूरी जानकारी ही नहीं हे l किन्तु उस वक़्त मैंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि मुझे कंप्यूटर कि अच्छी खासी जानकारी थी इसीलिए मैंने चुपचाप अपनी पढाई जारी राखी क्योंकि दूसरी ओर हमारे सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी (भुवनेश्वरपति तिवारी) हमे अच्कोउन्ट्स बहुत बढ़िया ढंग से पढ़ा रहे थे l ये हमारा किसी भी कोचिंग क्लासेज़ का पहला अनुभव था इसीलिए हमे यहाँ बहुत अच्छा लगता था l कुल मिला के हमारे दिन अच्छे जा रहे थे व पढाई भी काफी बढ़िया हो रही थी l हालांकि "इंग्लिश" कि कक्षा कभी - कभी ही लगती थी परन्तु फिर भी मैं यहाँ आकर काफी खुश था l बीच - बीच में कई बार पढ़ाई के दौरान क्लास में सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी द्वारा हिन्दू - मुस्लिम सियासी भेदभाव भी देखने को मिला किन्तु उस पे भी हमने ध्यान नहीं दिया और इसी तरह दो माह बीत गए l आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा का असली रंग दो माह के बाद धीरे धीरे दिखाई देने लगा जब मेरे बैच के अधिकांश छात्र स्नातक कि परीक्षा हेतु एक माह कि छुट्टी लेकर चले गए l

उस दौरान आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में शिक्षा का स्तर बद से बदतर हो गया l पढ़ाई के नाम पर अब हमें आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में सिर्फ हाजिरी लगाने आना पड़ता था क्यूंकि हमारे सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी ने हमे यह कह कर पढ़ाने से मना कर दिया था कि बाकी बच्चे जब लौट आयेंगे तब पढाई चालू होगी l हमने उनकी बात मान ली और किसी तरह एक महिना गुज़ारा l

धीरे - धीरे सभी छात्र व्वापिस आ गए किन्तु शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ l इसी दौरान आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा के संचालक श्री गौरव गर्ग का आगमन हुआ आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में l उन्होंने हम छात्रों से आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा के बारे में कोई भी शिकायत व सुझाव एक कागज़ पर लिख कर देने को कहा l तो मैंने यहाँ के बारे में सबकुछ बिलकुल सही सही लिख कर दे दिया l

आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा के संचालक ने हमारे विचारों व शिकायतों के ऊपर कार्यवाही तो कुछ की नहीं लेकिन इसका असर उल्टा हम छात्रों पर हुआ l लिहाजा आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा में पढ़ाई कछुए की चाल चलने लगी l छात्रों की बेवजह डंडे से पिटाई होने लगी l सियासी भेदभाव तो इतना होने लगा की बात बच्चों के घर तक पहुँचने लगी l मुझे तो यह शिक्षा का मंदिर अब पुलिस की जेल नज़र आ रहा था जहाँ सुबह सुबह हमारी पिटाई करना ज़रूरी था l ऐसा नहीं था कि केवल हमारा बैच ही इनकी बेरहमी का शिकार था बल्कि इन्होने तो पूरे आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा को ही जेल में तब्दील कर लिया था l पिटाई भी ऐसी कि देखने वाले कि जान हलक में अटक जाये l बीसियों डंडे, चालीसों घूंसे, अनगिनत चांटे और अगर लड़कियां न हो तो गन्दी गन्दी गालियाँ भी l और ये सब कोई और नहीं हमारे सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी और हमारे कंप्यूटर टीचर श्री जय अग्निहोत्री करते थे l हम छात्र उनके लिए बच्चे नहीं खूंटे से बंधे जानवर थे जिन्हें वे जब चाहे मारते रहते थे l एक ओर जहाँ में अपनी पढाई को ले कर चिंतित था वहीं दूसरी ओर बढती गर्मी ने नई मुसीबतें खड़ी कर दी थीं l

अप्रैल - मई आते - आते आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा पूरी तरह से छात्रों के खिलाफ हो चुकी थी और छात्रों के लिए सभी सुविधायें बंद कर दी गयीं थीं l गर्मी में गर्म पानी पड़ता था जो कि कभी कभी गन्दा भी रहता था, और पानी पीने के लिए सुबह हमें खुद ही पानी भर के लाना पड़ता था l बिजली जाने के बाद कक्षा में गर्मी हो जाती थी जबकि इनवर्टर से सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी और कंप्यूटर टीचर श्री जय अग्निहोत्री अपने ऑफिस में पंखा चला कर बैठे रहते थे l कुछ दिनों में उन्होंने अपने चपरासी को हटाकर एक चौदाह साल के छोटे बच्चे को ज़बरदस्ती नौकर बना लिया l वो चौदह साल का बच्चा मजबूर था जिसका फायदा उठाकर सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी और कंप्यूटर टीचर श्री जय अग्निहोत्री उस से खाना बनवाते थे, पैर दबवाते थे, और देर रात तक उससे अपने जूंठे बर्तन धुलवाते थे फिर सुबह जल्दी उठाकर उससे झाड़ू - पोंछा करवाते थे l सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी उसे गोरखपुर से लाये थे और उसके माता - पिता को आश्वासन दिया था कि वो उसे यहाँ पढ़ाएंगे l

पढ़ाई को लेकर आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पूरी तरह उदासीन हो चुकी थी l "इंग्लिश" पढ़ाने के लिए आई.आई.जे.टी की झांसी को कोई (सस्ता) शिक्षक नहीं मिल पा रहा था जिसकी वजह से हम छात्र "इंग्लिश" विषय कि कक्षा से अभी तक कोसों दूर थे और इसका सीधा असर हमारी पढ़ाई पर भी पड़ रहा था क्योंकि हमारी सभी विषय की किताबें इंग्लिश में थीं l अन्तः मैंने ही बीड़ा उठाया आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा को ठीक करने का l मैंने सबसे पहले यहाँ हम छात्रों पर हो रहे प्रत्येक अत्याचार की पूरी जानकारी अपने घर पर दी फिर अपने पिताजी और अपने बड़े भाई को लेकर मैंने कई बार सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी से शिकायत की जिसमें शिक्षा, बिजली, पीने का पानी, व खराब कम्प्यूटर्स आदि मुख्य विषय रहे परन्तु हर बार मेरे पिताजी को आश्वासन मिलता था और मुझे सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी से पिटाई l इस तरह लगातार हो रही पिटाई से तंग आकर एक दिन मैंने फैसला किया कि इनकी शिकायत आई.आई.जे.टी की कोलकाता शाखा में करनी होगी l क्योंकि आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखामें मेरा एक वर्ष पूरा होने वाला था और कोर्स अभी तक आधा भी नहीं हुआ था किन्तु यहाँ से बार बार पित कर मेरा पूरा शरीर सूज चूका था और अब मुझमे आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखाके खिलाफ कोई भी कदम उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी l

एक दिन तो हद ही हो गई जब हमारे सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी ने हमें धमकाते हुए कह दिया की अब अगर तुम्हारी या तुम्हारे बैच से कोई भी शिकायत यहाँ के खिलाफ मुझे मिली तो में उसे यहाँ से हमेशा के लिए निकाल दूंगा l उनकी इस धमकी से हम सभी छात्र सकते में आ चुके थे l आखिरकार एक दिन मैंने अपने दोस्त खेमचन्द्र झा के घर जा कर कोलकाता आई.आई.जे.टी को आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा की सभी शिकायतें इ-मेल कर दीं l लेकिन इसके बाद आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा ने मुझसे सीढ़ी दुश्मनी कर ली क्योंकि मेरी भेजी हुई शिकायत की एक कॉपी आई.आई.जे.टी कोलकाता ने आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा में भेज दी थी l

आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग व चन्द्रप्रकाश तथा आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी ने मेरी पढाई बंद करा दी और मुझे आगे पढ़ाने से व कोई भी सर्टिफिकेट देने से साफ़ इनकार कर दिया l सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी ने मुझे साफ़ कह दिया था की पढाई से तो तुम गए समझो लेकिन अगर हमारे खिलाफ कोई भी, कहीं भी शिकायत की तो और किस किस चीज़ चीज़ से जाओगे अभी तुम्हे पता नहीं l सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी की धमकी के आगे मैंने सर झुका लिया क्योंकि मैंने कभी कोई फसाद नहीं किया था और न ही मैं कोई बवाल चाहता था इसीलिए मैं चुप हो गया l

तीन माह और किसी तरह गुज़रे आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखा के सितम सहते हुए l मुझे यहाँ आ कर बहुत पछतावा हो रहा था मगर अब काफी देर हो चुकी थी और अब तो मेरा मन भी कठोर हो चुका था और अब मैंने अपने अंजाम की परवाह किये बगैर आई.आई.जे.टी की झाँसी शाखाके खिलाफ "एक्शन" लेने का फैसला ले लिया l

जून माह में कई बार मेरे पिताजी ने आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग व चन्द्रप्रकाश तथा आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी से मिले क्योंकि आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा में मुझे 18 महीने हो चुके थे लेकिन अभी तक न तो हमारा कोर्स पूरा हुआ था और न ही हमारी किताबें हमें मिली थीं l इस बार मेरी और मेरे परिवार की सख्ती का असर दिखा और आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पर दबाव बढ़ने लगा क्योंकि वो तय समय पर मेरा कोर्स पूरा नहीं करा सके थे l

जुलाई की शुरुआत में मेरे पिताजी ने आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी से तीखे स्वर में कह दिया कि यदि उन्होंने कोर्स पूरा नहीं कराया तो वो आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पर कानूनी कार्यवाही करेंगे l पिताजी कि इस बात का सबसे ज्यादा असर शायद आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के सेंटर मेनेजर श्री बी.पी.तिवारी पर हुआ और तभी वो कुछ ही दिनों में आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा छोड़कर भाग गए l

श्री बी.पी.तिवारी के भागने कि खबर सुनते ही हम छात्र आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा में पहुँच गए l सभी छात्र अपना आप खो बैठे थे जिन्हें मैंने नियंत्रित किया l मैंने छात्रों का सफलतापूर्वक नेत्रित्व करते हुए किसी भी प्रकार कि अनहोनी करने से रोक दिया l सभी छात्रों ने एक ही रट लगा रखी थी, उन्हें अपने पैसे वापिस चाहिए थे l किन्तु जब आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश ने पैसे वापिस करने से इनकार कर दिया तो मैंने उनकी F .I .R करने कि कोशिश की किन्तु मैं नाकाम रहा l ग्वालियर चौकी पुलिस ने उन्हें हिरासत में तो ले लिया परन्तु F.I.R दर्ज नहीं की l

ग्वालियर चौकी के इंस्पेक्टर ने हमे अगली सुबह पैसे वापसी का आश्वासन दिला वापिस घर भेज दिया l उस रात गौरव गर्ग को उनकी पत्नी व बच्चे समेत हिरासत में ले लिया गया था और हिरासत जिस तरह पुलिस गौरव गर्ग से बात कर रही थी उससे मेरी व सभी छात्रों की पैसे वापसी की उम्मीद प्रबल हो गयी थी l लेकिन अगली सुबह हमारे लिए किसी चौंकाने वाले तथ्य से से कम नहीं थी l

अगली सुबह जब में ग्वालियर चौकी पहुंचा तो इस बार मेरे साथ मेरे पिता भी थे l जब में वहां पहुंचा तो देखा कि आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग व उनकी पत्नी और बेटा वहां वहां नहीं थे l जानकारी करने से मालूम पड़ा कि उन्हें रात में ग्वालियर चौकी पुलिस ने छोड़ दिया था l अब मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था तो अंततः मैंने गौरव गर्ग को दोबारा चौकी बुलाने के लिए ग्वालियर चौकी इंस्पेक्टर से गुजारिश की l ग्वालियर चौकी इंस्पेक्टर ने तुरंत ही फोन लगाया गौरव गर्ग को लेकिन गौरव गर्ग ने फोन पर यह कह कर आने से इनकार कर दिया कि अगर दरोगा को उनसे बात करनी हे तो वो आई.आई.जे.टी कि झाँसी शाखा में आये l गौरव गर्ग कि इस बात को सुनने के बाद ग्वालियर चौकी इंस्पेक्टर ने कोई भी एक्शन लेने के बजाए हम छात्रों को सलाह दी कि "वो तो यहाँ आयेंगे नहीं अब आप ही लोग उनसे मिल लीजिये क्योंकि इसके आगे हम कुछ नहीं कर सकते l

इसके आगे तो मेरी समझ ने भी काम करना बंद कर दिया तभी मेरे पिताजी ने सुझाव दिया की चलो गौरव गर्ग से मिल कर समझौता कर लें l में और ग्वालियर चौकी में मौजूद सभी आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के छात्र मेरे पापा की इस बात पर सहमत हो गए l मैं पढना चाहता था इसीलिए मैंने पूरे जोश के साथ हामी भर दी l

कुछ ही देर में सभी छात्र आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पहुँच गए और सभी ने आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग से बात करने के लिए मेरे पापा को चुना l मेरे पापा गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश से समझौते की बात करने गए l वो कई घंटे तक उन्हें समझाते रहे लेकिन उन्होंने किसी भी तरह के समझौते से साफ़ इनकार कर दिया l सभी छात्र हताश हो चुके थे कि तभी मैंने एक उपाय निकाला l चूंकि मुझे पढना था इसीलिए मैंने उन्हें तीन महीने के अंदर अपना बचा हुआ पूरा कोर्स करने के साथ सभी तीन सर्टिफिकेट और किताबें उपलब्ध करने को कहा l मेरे ये प्रस्ताव दोनों पक्षों को पसंद आए और गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश ने ये बातें एक समझौते के तौर पर आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के लैटरहेड पर लिख कर दे दीं l हम सभी खुश हो गए थे कि दिनभर चली इस वार्ता का अंततः निष्कर्ष निकल आया था l

समझौते के अनुसार हमे अगले दिन से ही कक्षा में पढने आना था तो अगले दिन सुबह सबसे पहले में और मेरा सहपाठी अब्दुल वासे आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पहुँच गए इस उम्मीद में कि थोडा ज्यादा ही पढाई हो जाएगी नहीं तो कोर्स कि बची हुई पुस्तकें तो प्राप्त हो ही जायेंगे l किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ l दरअसल जैसे ही हम आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पहुंचे, गौरव गर्ग ने हमे अपने ऑफिस में बुलाया l उस वक़्त आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा में केवल दो - चार नए छात्र ही थे और कोई नहीं था l गौरव गर्ग ने हमे बैठाया और मुझसे धमकाने भरे अंदाज़ में बात करने लगे l गौरव गर्ग ने मुझे बताया कि किस तरह सुल्तानपुर में उन्होंने अपना अपहरण करवा कर इलज़ाम छात्रों पर दाल इडिया था जिससे कि उनका भविष्य खराब होते होते बचा था l गौरव गर्ग मुझे बताने लगे कि उनको कोर्ट - कचहरी का काफी अनुभव है और पुलिस भी उनकी जेब में है जिसका नमूना उन्होंने पिछले दिनों दिखा दिया था l में तो सकते में रह गया, मैंने पूँछा "कैसे? " तो उन्होंने सीधे पर वाही धमकाने भरे स्वर में कहा कि " जब तक इस दुनिया में लोग बिकते रहेंगे तब तक हम लोग तुम जैसों पर राज करेंगे " l गौरव गर्ग ने बताया कि पुलिस क्या चीज़ है में तो हाईकोर्ट के जजों तक को खरीद सकता हूँ क्योंकि मेरे पास छ: करोड़ की संपत्ति है जिसे वक़्त पड़ने पर मैं तुम लोगों के खिलाफ पूरी झोंक सकता हूँ l इसके अलावा उन्होंने मुझसे कहा कि तुम कुछ ज्यादा ही उचक रहे हो अगर तुम्हे कुछ हो गया ना तो ये तुम्हारे साथ जितने भी खड़े हैं ना सब पीछे हट जायेंगे l गौरव गर्ग कि ये बात सुन कर तो मेरा कलेजा सूख गया l इसके बाद गौरव गर्ग ने अंत में कहा कि मैं तुम दोनों को दो रास्ते देता हूँ :

1. या तो चुपचाप सर्टिफिकेट लेकर घर बैठ जाओ और भूल जाओ अपनी पढ़ाई, पैसे और पूरी आई.आई.जे.टी झांसी शाखा और हमें अपना काम करने दो या फिर

2. मेरे खिलाफ खड़े हो जाओ और फिर देखो में तुम्हारे करियर को किस कदर बर्बाद करता हूँ l ध्यान रखना तुम्हारे साथ कभी भी, कहीं भी, कुछ भी हो सकता है l

उनकी इन बातों को सुनकर हम चुचाप वहां से चल दिए l अब्दुल ने कहा कि गौरव गर्ग का कहना सही हे और हमे चुपचाप सर्टिफिकेट लेकर ये मामला यहीं ख़त्म कर देना चाहिए l मैंने उसको हाँ तो कर दी पर मन नहीं मान रहा था, लग रहा था कि आज पहली बार भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का अवसर मिला है तो क्यूँ पीछे हटा जाए क्योंकि अगर आज मैं पीछे हट जाता हूँ तो आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा का छात्रों को लूटने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा l अगले दिन मैंने अपने सभी दोस्तों को घर पर बुलाया और उन्हें अपना फैसला सुना दिया कि समझौते के अनुसार अगर नब्बे दिनों के भीतर आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा ने मेरा कोर्स पूरा नहीं कराया तो मैं आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के संचालक गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश के विरुद्ध एक बार फिर कानून का सहारा लूँगा l इसी विचार के साथ हम सब छात्र आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पहुंचे लेकिन गौरव गर्ग ने हमे ये कह कर लौटा दिया कि अभी कोई शिक्षक नहीं मिला, जब मिलेगा तो बुलवा लेंगे l हम अब घर लौट आए और गौरव गर्ग के फोन का इंतज़ार करने लगे किन्तु आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा से कोई फोन नहीं आया l

दिन, मास बीते और आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा से हुए समझौते कि अवधि भी ख़तम होने कि कगार पे आ गयी l इसी बीच अब्दुल वासे खालिद ने आ कर मुझे खबर दी कि गौरव गर्ग आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा खाली करवा कर कहीं भाग गए और आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा बंद कर दी l उन्होंने अपने लिखे हुए समझौते का उल्लंघन किया था लिहाजा मैंने गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश के खिलाफ एस.एस.पी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई l कई महीने बीत बीत जाने के बावजूद भी जब वहां से कोई कार्यवाही नहीं हुई तो मुझे गौरव गर्ग कि धमकी याद आने लगी जिसमे उन्होंने पोलिसे के बिकाऊ होने कि बात कही थी l किन्तु मैंने हार नहीं मानी और एक बार फिर कोशिश की l इस बार मैंने "तहसील दिवस" में शिकायत दर्ज कराई जहाँ से मुझे निश्चित कार्यवाही का आश्वासन मिला किन्तु ये भी बेकार गया और इस तरह धीरे - धीरे हताश हो कर व डर कर कई छात्र मेरा साथ छोड़ते चले गए l अब रह गए थे हम मुठ्ठी भर छात्र जिनके ऊपर जिम्मा था न्याय की इस ज्योत को जलाय रखने का l

मुझे आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा के नए स्थान का पता इत्तेफाक से चला था l एक दिन जब मैं आशिक चौराहे से निकल रहा था तभी आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा का एक छात्र "कृष्णा" मुझे मिला l कृष्णा ने मुझे बताया की वो भी बाकी छात्रों की तरह गौरव गर्ग व चंद्रप्रकाश के डर की वजह से पीछे हट गए l लेकिन उसने मुझे बताया कि आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा अलाहाबाद बैंक चौराहे के पास कहीं खोलने कि तयारी में है l

मैंने उसी दिन आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा का पता लगाया और अगले दिन गौरव गर्ग का फोन आ गया जिसमे उसने मुझे वहां आने को कहा l हालांकि गौरव गर्ग ने मुझे अकेले बुलाया था लेकिन फिर भी मैं अपने सहयोगी छात्र राकेश विश्वकर्मा, अब्दुल वासे खालिद, मनीश निगम, खेमचंद्र झा, और प्रमोद सोनी को अपने साथ ले गया l यहाँ अलाहाबाद बैंक चौराहे स्थित आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पर गौरव गर्ग, चंद्रप्रकाश के साथ अनूप दुबे भी मौजूद थे l तीनो ने मुझे बुलाकर एक बार फिर धमकाते हुए चेतावनी दी कि यदि मैंने इस बार उनके (गौरव गर्ग, चंद्रप्रकाश व अनूप दुबे) के काम मैं रुकावट डाली तो वो मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं l उनका धमकाने का अंदाज़ पिछली बार से भी ज्यादा खतरनाक था l जिसमे उन तीनो ने मुझसे कहा कि 2 अक्टूबर को आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा फिर से शुरू हो रही है और अगर 2 अक्टूबर तक मैंने अपनी गतिविधियों पर रोक नहीं लगायी तो मेरे लिए अच्छा नहीं होगा l

लिहाजा मैंने अंतिम बार प्रयास किया और एक बार फिर प्रार्थना पत्र ले कर सीधे एस.एस.पी कार्यालय आ पहुंचा जहाँ मेरा साथ देने के लिए केवल अब्दुल वासे खालिद और राकेश विश्वकर्मा ही मौजूद थे l

मैंने प्रार्थना पत्र एस.एस.पी महोदय को दिया और अपनी विपदा सुनाई और उन्हें ज्ञात कराया की इससे पहले भी मैं दो बार इस तरह की दरख्वास्त लगा चुका हूँ l इस बार मेरी इस दरख्वास्त पर पर एस.एस.पी महोदय ने जांच के आदेश की मुहर लगा दी और उसे सीपरी थाने भेज दिया l

इस दरख्वास्त में सबसे पहले मेरा ही नंबर था और सौभाग्य से सीपरी थाना मेरे घर के सामने ही था l तो अगले दिन ही मुझे सीपरी थाने के इंस्पेक्टर का फोन आया और उन्होंने मुझे थाने में बुलाया l थाने पहुँचने पर उन्होंने मुझे अपने साथ चलने के लिए कहा उस जगह पर जहाँ गौरव गर्ग दोबारा आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा खोलने जा रहे थे l उसी दिन दो पुलिस इंस्पेक्टर्स के साथ सुबह सुबह मैं अलाहाबाद बैंक चौराहे पर स्थित आई.आई.जे.टी की झांसी शाखा पर पहुँच गया l पुलिस को दूर खड़ा कर मैं खुद अन्दर गया ताकि ये मालूम कर सकूं कि गौरव गर्ग व चन्द्रप्रकाश यहाँ हैं या नहीं l अन्दर जाते ही मुझे गौरव गर्ग दिख गए और मैंने तुरंत ही बाहर निकल कर पुलिस को इशारा कर दिया l इससे पहले कि गौरव गर्ग, चंद्रप्रकाश कुछ कर पाते पुलिस ने गौरव गर्ग को गिरफ्तार कर लिया l गौरव गर्ग की गिरफ्तारी से तो जैसे समुचित आई.आई.जे.टी में खलबली मच गयी l उनकी 2 अक्टूबर को होने वाली ओपनिंग अब ताल चुकी थी l यहाँ गौरव गर्ग को छुडाने के लिए चंद्रप्रकाश व उनके नाते रिश्तेदारों ने पुरजोर कोशिश की किन्तु वो कामयाब न हो सके l इसी बीच आई.आई.जे.टी की कानपुर शाखा से आलोक अग्निहोत्री हम छात्रों से मिलने आ पहुंचे l अलोक अग्निहोत्री ने आकर हमसे पहले तो प्यार से बात की जिसमे की उन्होंने हमसे कहा कि वो हमारा पूरा कोर्स करा देंगे और उसके बाद सर्टिफिकेट भी देंगे लेकिन इस पर भी उन्होंने हमे जॉब गारंटी नहीं दी और साथ ही हमसे अगले साल हमारे अपने खर्चे पे कानपुर में रह कर आई.आई.जे.टी की कानपुर शाखा में पढने को कहा l इस पर मैंने उन्हें साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि में पहले ही अपने दो साल खराब कर चुका था और अब में आगे के साल बर्बाद नहीं कर सकता था l मेरी बात से सभी छात्र असहमत थे और हम सभी ने एक ही मांग रखी थी कि हमारे पूरे पैसे वापिस हो जाएँ बस और कुछ नहीं l

किन्तु अलोक अग्निहोत्री मेरी इस बात पर भड़क गए और बोले "साले जिंदगी निकल जाएगी केस लड़ते लड़ते लेकिन हमारा कुछ नहीं उखाड़ पाएगा, करीयर बर्बाद हो जायेगा तेरा l जानता है कौन है हमारे पीछे? ये आई.आई.जे.टी पूर्व वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा जी की है l साले तेरा पूरा घर तक बिक जायेगा फिर भी जीत नहीं पाएगा हमसे l समझा? "

इतना कह कर अलोक अग्निहोत्री वहां से चले गए लेकिन मैंने ठान रखा था कि जो कुछ भी हो आज पीछे नहीं हटना है l रात 9 बजे तक वो गौरव गर्ग को बेगुनाह साबित न कर सके l उनके सभी सुबूत मेरे द्वारा पेश किये गए सुबूतों के समक्ष निराधार हो गए l

रात 9 बजे थानाध्यक्ष ने हमे बुलाया और हमे दो रास्ते बताये :

1. या तो हम समझौता कर लें और केवल 5000 रूपए प्रति छात्र स्वीकार कर लें और अपने कंप्लेंट वापिस ले लें

या फिर

2. उनके खिलाफ केस की तैयारी करें l

सुबह अगले दिन पोलिसे ने मुझे बुलाया l जब में थाने पहुंचा तो अचानक चौंक पड़ा क्योंकि रात को जब में थाने से गया था तो केवल गौरव गर्ग पुलिस की हिरासत में थे लेकिन गौरव गर्ग के साथ चंद्रप्रकाश भी पुलिस हिरासत में थे और दोनों के विरुद्ध पुलिस ने IPC की धारा 406 व 506 के तहत FIR दर्ज की थी जिसकी दूसरी प्रति देने के लिए मुझे बुलाये था l

थाने में सभी कानूनी कार्यवाही पूरी करने के बाद में सीधे कचहरी की ओर निकल पड़ा साथ में कुछ और साथी भी थे l ये हमारा कचहरी का पहला अनुभव था लिहाजा केस दायर करने से पहले वकील ने मुझे बता दिया की इस केस में मेरा घर तक बिक सकता है और यदि में हार गया तो उल्टा केस मेरे ऊपर भी हो सकता है l लेकिन ये सभी शर्तें सिर्फ उस इंसान के लिए हैं जिसका नाम वादी के तौर पर जाएगा l इस बात से हम सबके चेहरे उतर गए क्योंकि लड़ने वाले तो आठ छात्र थे लेकिन वादी केवल एक को बनना था जिसकी इस मुक़दमे में सारी ज़िम्मेदारी होगी, जिसका सब कुछ दांव पर लगा होगा l मैंने सबको एक नज़र देखा, कोई भी वादी बनने को तैयार नहीं था क्योंकि वादी बनने का मतलब था वो इस मुक़दमे को बगैर किसी फैसले के बीच में नहीं छोड़ सकता चाहे कुछ भी हो जाये l

अंततः मैंने ये बीड़ा उठाया और वादी वाली खाली जगह पर अपने हस्ताक्षर कर दिए l पहले दस दिन तो सबकुछ ठीक-ठाक चला और एक समय तो ऐसा भी आया जब गौरव गर्ग के परिवारवालों ने हमे संपर्क किया कि वो लोग हमारे घर आना चाहते हैं समझौता करने क्योंकि पिछले दस दिनों तक गौरव गर्ग और चंद्रप्रकाश की ज़मानत नहीं करा पाने के कारण उनके हौसले पस्त पड़ चुके थे और वो हम छात्रों की सभी शर्तें मानने को तैयार हो गए थे l

हम सभी छात्र काफी खुश थे क्योंकि अन्याय के विरुद्ध लड़ाई मैं हमारी जीत हो रही थी l लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा क्योंकि जिस रात वो मेरे घर समझौता करने के लिए आये थे, उस रात वो समझौते के बहाने हम सभी छात्रों में फूट डाल गए l इसका असर अगली सुबह ही दिखाई दे गया जब उनके द्वारा भेजी गयी ज़मानत याचिका मुझे पुलिस ने दिखाई l मेरे द्वारा पूंछे जाने पर पुलिस ने बताया कि इसकी एक प्रति मेरे वकील के पास भी है l मैंने जब उस ज़मानत याचिका को पढ़ा तो दंग रह गया क्योंकि उसमे चार छात्रों की जगह केवल तीन के ही नाम थे l ज़मानत याचिका में जिस छात्र का ज़िक्र नहीं था वो था राकेश विश्वकर्मा जिनके बड़े भाई और पेशे से वकील श्री मनमोहन विश्वकर्मा को हमने इस मुक़दमे की ज़िम्मेदारी सौंपी थी और वो उस रात को भी मेरे घर आये थे जिस रात समझौता होना था l

अब मेरा माथा ठनका और मैं तुरंत ही अपने वकील (श्री देवी सिंह) के पास पहुंचा और कुछ कागज़ देखने के बहाने उनकी फाइल खुलवाई और उसमे सबसे ऊपर गौरव गर्ग की ज़मानत याचिका कि प्रति देखकर दंग रह गया l मैंने कुछ नहीं कहा और चुपचाप चला आया l इसके बाद मैंने ये बात अपने बाकी दोस्तों को बतायी तो उन्हें एक बारगी यकीन नहीं हुआ फिर इसकी पुष्टि हमने कई तरीकों से की ताकि पता चल सके कि हमारे बीच आखिर कौन है वो शख्स जो गौरव गर्ग और चंद्रप्रकाश के साथ मिला हुआ है l

सबसे पहले मैंने मनमोहन विश्वकर्मा से जानने की कोशिश की कि क्या कोई ज़मानत याचिका आई है उनके पास गौरव गर्ग व चन्द्रप्रकाश की तो वो साफ़ मुकर गए कि उनके पास कोई ज़मानत याचिका कि प्रति नहीं आई है l मगर इसकी असली पुष्टि तो तब हुई जब उन्होंने हमारे मुक़दमे में दिलचस्पी दिखानी कम कर दी और जिस दिन गौरव गर्ग और चंद्रप्रकाश कि ज़मानत हुई उस दिन मैं कोर्ट में ही था और मेरे साथ प्रमोद सोनी, अब्दुल वासे खालिद और मेरा भाई अभिषेक मौजूद थे लेकिन राकेश विश्वकर्मा मौजूद नहीं था l सबसे बड़ी बात, वकील ने हमे यह भी नहीं बताया कि ज़मानत कब, कहाँ और किस कोर्ट से होनी है l लिहाजा ज़मानत हो जाने के बाद हम सभी छात्रों के मन उदास हो गए थे l ये हम छात्रों की अब तक की सबसे बड़ी हार थी क्योंकि अब वो समझौते को तैयार नहीं थे l उनके बाहर आने का मतलब था लम्बा संघर्ष, इतना लम्बा जिसका कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था l

एक के बाद एक कई छात्रों ने इसी नाकामी के दर से मेरा साथ छोड़ दिया l लगातार मिली शिकस्तों ने जहाँ एक और मेरे दोस्तों का हौसला तोड़ दिया, वहीं दूसरी ओर मुझमे एक नै जान फूंक दी और मैंने ठान लिया की अब इस केस मैं कोई समझौता नहीं होगा l अब होगा तो सिर्फ फैसला, चाहे जब हो, चाहे किसी के भी पक्ष मैं हो l

मैंने ये बात जान ली थी कि गौरव गर्ग जो कहते हैं वो कर के भी दिखाते हैं l उन्होंने ज़मानत कि याचिका मैं जितने भी दावे किये थे वो सभी गलत थे लेकिन उन्होंने झूठे सुबूत अदालत में पेश करके अपनी ज़मानत करवा ली l अपने पैसों कि दम पर उन्होंने सब कुछ अपने पक्ष में कर लिया था, हमारे छात्र भी l

आखिरकार मैंने भी गौरव गर्ग, चंद्रप्रकाश और समुचित आई.आई.जे.टी का पर्दाफ़ाश करने कि ठानी l लिहाजा मैंने न्यूज़ चैनलों, न्यूज़ पेपर वालों के दफ्तरों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए l मुझे उम्मीद थी कि प्रेस या न्यूज़ चैनल वाले मेरी मदद ज़रूर करेंगे, आखिर में सच्चा था ओर मेरा कदम देशहित में था l लेकिन यह भी शायद मेरी दूसरी सबसे बड़ी भूल थी l मैंने कानपुर 'प्रेस क्लब', कई सारे न्यूज़ चैनलों व प्रेस के दफ्तरों के बीसियों चक्कर लगा डाले, इस दौरान मैंने अपनी पूरी जमा पूँजी किराए में खर्च डाली और अब में अपना सब कुछ गंवाने कि कगार पर था लेकिन वहां जो हुआ मेरे साथ देखिये :

हालात कानपुर प्रेस :

कानपुर प्रेस क्लब में आने पर मैंने कई पत्रकारों को रोक-रोक कर उन्हें अपनी गुहार सुनाई l मैंने बताया कि ये मसला मेरे अकेला का नहीं है l इससे जुड़े हैं कई और छात्र और कहें न कहीं पूरा देश भी लेकिन वहां के पत्रकारों ने मुझे कुछ दिन तो आज-कल करके टरकाया उसके बाद साफ़ साफ़ शब्दों में कह दिया "अगर प्रेस कांफ्रेंस करानी है तो पैसे भरो, रसीद कटाओ उसके बाद हम देखेंगे अगर तुम्हारी खबर में दम होगी तो ही छापेंगे नहीं तो नहीं l मैंने कहा "आप एक बार देखिये तो सही" तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि इन छोटी छोटी बातों के लिए हमारे पास समय नहीं है l जब मैंने मालूम किया कि ये रसीद जो कटती है 350 रूपए कि उसका क्या होता है? तो मालूम पड़ा कि उस पैसे से सभी पत्रकार पेटीज और कोल्ड ड्रिंक एन्जॉय करते हैं इसीलिए ये रकम अदा करना ज़रूरी होती है l

इस पर में झल्ला उठा और कहा कि मेरी जगह अगर कोई बड़ा मंत्री या फ़िल्मी हस्ती होती और उसे बुखार ही आ जाता तो वो आपके न्यूज़ चैनल कि ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती और आप सारा दिन या पूरे हफ्ते उसके अपडेट हम लोगों को दिखाते लेकिन मेरी इतनी बड़ी घटना भी आपको मामूली लग रही है l उन्होंने फिर भी मेरी नहीं सुनी और मजबूरन मुझे वहां से जाना पड़ा l बिलकुल यही स्तिथि मेरी न्यूज़ पेपर कार्यालयों में भी रही जहाँ मुझे किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली l न्यूज़ चैनल के पत्रकार तो इस कदर मुझसे बात करते थे कि जैसे मैंने उनसे मुफ्त में मदद माग के कोई गुनाह कर दिया हो l खैर यहाँ एक बात तो साफ़ हो चुकी थी कि अब ये लड़ाई मुझे अपने हक के लिए अकेले ही लड़नी होगी l मन तो कर रहा था कि अपने इस जीवन को ही ख़त्म कर दूं जो कि रिश्वतखोरों के बीच जी रहा हूँ l जिस मीडिया पे मुझे कानून क�


Company: Indian Institute of Job Oriented Training (Jhansi)

Country: India   State: Uttar Pradesh   City: Jhansi

Category: Education & Science

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